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अवि॑ष्टो अ॒स्मान्विश्वा॑सु वि॒क्ष्वद्युं॑ कृणोत॒ शंसं॑ निनि॒त्सोः ॥१२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

aviṣṭo asmān viśvāsu vikṣv adyuṁ kṛṇota śaṁsaṁ ninitsoḥ ||

पद पाठ

अवि॑ष्टो॒ इति॑। अ॒स्मान्। विश्वा॑सु। वि॒क्षु। अद्यु॑म्। कृ॒णो॒त॒। शंस॑म्। नि॒नि॒त्सोः ॥१२॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:34» मन्त्र:12 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:26» मन्त्र:2 | मण्डल:7» अनुवाक:3» मन्त्र:12


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजजन क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजजनो ! तुम (विश्वासु) समस्त (विक्षु) प्रजाओं में (अस्मान्) उनके अनुकूल राज्याधिकारी हम जनों को (अविष्टो) दोषों में न प्रवेश किये हुए निरन्तर रक्षा करो हमारी (शंसम्) प्रशंसा (कृणोत) करो हम लोगों की (निनित्सोः) निन्दा करना चाहते हुए के (अद्युम्) प्रकाशरहित व्यवहार को प्रकाश करो ॥१२॥
भावार्थभाषाः - राजजन प्रजाओं में वर्त्तमान निन्दक जनों का निवारण कर प्रशंसा करनेवालों की रक्षा कर और प्रजाजनों में पिता के समान वर्त्त कर अविद्यान्धकार को निवारण करें ॥१२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजजनाः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे राजजना ! यूयं विश्वासु विक्ष्वस्मान्नविष्टो सततं रक्षत अस्माकं शंसं कृणोत अस्मान्निनित्सोर्व्यवहारमद्युं कृणोत ॥१२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अविष्टो) दोषेष्वप्रविष्टाः सन्तो रक्षतः (अस्मान्) तदनुकूलान् राज्यादिकारिणः (विश्वासु) अखिलासु (विक्षु) प्रजासु (अद्युम्) प्रकाशरहितं व्यवहारम् (कृणोत) (शंसम्) प्रशंसनम् (निनित्सोः) निन्दितुमिच्छतः ॥१२॥
भावार्थभाषाः - राजजनाः प्रजासु वर्त्तमानान् निन्दकान् जनान् निवार्य प्रशंसकान् संरक्ष्य प्रजासु पितृवद्वर्तित्वा अविद्यान्धकारं निवारयन्तु ॥१२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजजनांनी प्रजेतील निंदक लोकांचे निवारण करून प्रशंसा करणाऱ्यांचे रक्षण करून प्रजेशी पित्याप्रमाणे वागून अविद्या अंधकाराचे निवारण करावे. ॥ १२ ॥